सोमवार, 8 अप्रैल 2019

कविता : एक ऐसे मोड़ पर

" एक ऐसे मोड़ पर "

जब मैं खड़ा था एक ऐसे मोड़ पर,
मेरी जिंदगी ले गई उस छोर पर |
दिखाए मुझे कई किनारे उस छोर पर,
पर मुझे ही नहीं था भरोसा अपनी सोच पर |
मेरी जिंदगी ने मुझे वहाँ पर टोका,
पर मुझे डर था कहीं मैं खा न जाऊ धोखा |
मैंने वहाँ पर भी कुछ ठहर कर सोचा,
मुझे लगा इसमें है कुछ न कुछ लोचा |
मुझे लगने लगा अब अकेलापन,
जब मैं खड़ा था एक ऐसे मोड़ पर |

                                                                                                                 कवि : समीर कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर


कवि परिचय : यह कविता समीर के द्वारा लिखी गई है जो की प्रयागराज के निवासी हैं और वर्तमान समय में अपना घर संस्था में रहकर अपनी पढ़ाई कर रहे हैं | समीर को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | समीर एक संगीतकार भी हैं और अपनी कला को दूसरों को भी सिखाते हैं |

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