बुधवार, 3 अप्रैल 2019

कविता : सुहानी सी सुबह

" सुहानी सी सुबह "

सुहानी सी सुबह खिली है,
लगता है धरती सूरज से मिली है |
उसके एक एक कण ऊर्जा से भरे है,
ऐसा लगता है जैसे सागर में मोती बिखरे हैं |
सुनहरी सुबह प्रकति से बात करती है,
पता नहीं प्रकति क्यों इतना मचलती है |
चहचहाती चिड़ियाँ, खुली हुई खिड़कियाँ,
बंधन से टूटी साडी वो बेड़ियाँ |
लहलहाते फसल मन में हलचल,
उम्मीद रहती है अच्छा हो कल |


  कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर



कवि परिचय : यह हैं प्रांजुल जिन्होंने यह कविता लिखी है जो की छत्तीसगढ़ के निवासी हैं | प्रांजुल को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और हर हफ्ते ये कवितायेँ लिखते हैं | प्रांजुल इंजीनियर की पढ़ाई करना चाहते हैं | प्रांजुल को गणित बहुत ही अच्छा लगता है और उसको विषय के रूप में न लेकर मस्ती में पढ़ते हैं |

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