रविवार, 17 फ़रवरी 2019

कविता : कोहरे की सफ़ेद चादर

" कोहरे की  सफ़ेद चादर "


कोहरे की  सफ़ेद चादर फैली है,
कभी कड़क तो कभी सर्दी है |
पूरे शरीर, हाथ को ठण्ड पहुंचाती है,
गर्म से ठण्ड हुई है धरती |
जुखाम , खासी को पनपाता है,
भारी दर्द से चिकित्सा के पास जाता है |  
सूर्य की रौशनी एक जरिया है,
सर्दी को भगाने का दरिया है |
कोहरे की  सफ़ेद चादर फैली है,
कभी कड़क तो कभी सर्दी है |

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर


कवि परिचय : प्रांजुल कुमार जो की छत्तीसगढ़ के निवासी है | प्रांजुल को कवितायेँ लिखना बहुत पसंद है और लगभग अभी तक वह बहुत सी कवितायेँ लिख चूका है | पढ़लिखकर एक इंजीनियर बनना चाहते हैं | प्रांजुल को पढ़ना बहुत अच्छा लगता है |

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