शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

कविता : मनुष्यता को जगाओ

" मनुष्यता को जगाओ "

क्या सोचना क्या करना है,
यह तो सब व्यक्ति को पता है |
क्या गलत है क्या सही है,
यह तो मनुष्य को पता है |
सिर्फ अंधों और पागल को छोड़कर,
अनपढ़ और निर्जीव वास्तु को छोड़कर |
फिर ये हमारी दुनियाँ समझदार क्यों नहीं,
आपस में मनुष्यता और भाईचारा क्यों नहीं |
भ्रष्टाचारी और गरीब भूखे लोग क्यों हैं, 
इतना काला खौफनाक जिंदगी क्यों है |
भूखे नंगे लोगो के जीवन में अँधेरा क्यों है,
मनुष्य - मनुष्य फिर अलग क्यों  हैं |
जागो मनुष्य अपनी मनुष्यता को जगाओ,
पृथ्वी पर आए हो तो कुछ कर दिखाओ |

कवि : विक्रम कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर



कवि परिचय : यह कविता विक्रम के द्वारा लिखी गई है | विक्रम बिहार के नवादा जिले के रहने वाले हैं | विक्रम को कवितायेँ लिखना बहुत पसंद है और वह अपनी प्यारी -प्यारी कविताओं एकत्रित कर उन्हें एक किताब में प्रकाशित करवाना चाहता है | विक्रम एक रेलवे डिपार्टमेंट में काम करना चाहते हैं |

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