" बारिश "
धरती थी बड़ी बेहाल यारा,
समझ न आये तो सब बेकार |
तब आयी बड़ी सी बछौर,
उसका नाम था बारिश यारा |
एक करोड़ से ज्यादा दिन तक,
वह दूरी तय करी सीमा तक |
सुखी हुई थी मिट्टी जो,
वह बारिश से गीली हो गई |
हरियाली से ये धरती भरी,
फिर यह मुस्काने लग गई |
हम ने मेहनत की थी जो,
वह भी पूरी हो गई |
निराली हो गई यह धरती यार,
जो धरती थी बड़ी बेहाल |
नाम : समीर कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर
कवि परिचय : यह है समीर जो की इलाहबाद के रहने वाले हैं और अपना घर रहकर अपनी पढ़ाई कर रहे हैं | बड़े होकर समीर एक महँ सिंगर बनना चाहते हैं | खेल में समीर को क्रिकेट पसंद है |
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (09-05-2018) को "जिन्ना का जिन्न" (चर्चा अंक-2965) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी