शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

कविता : गर्मी

" गर्मी "

चीखती है जिंदगी हमारी, 
गर्मियों की चलती हवाओं में | 
चल रही है जिन्दगी हमारी,
इस सूखे एक बूँद पानी में |  
नहीं चलती थी ऐसी हवाएं ,
आज से पहले किसी ज़माने में | 
क्यों किया  मानव ने ऐसा काम, 
जो सहना पड़ रहा ४० का तापमान | 
ये गर्मी की हवाएं, होठो की मुस्कान,
यूँ ही चुरा ले जाती है |  
अगर हसना भी चाहे तो,
पेट में दबी सी रह जाती है | 

नाम : नितीश कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर 

कवि परिचय : यह हैं नितीश कुमार जो की बिहार के नवादा जिले के रहने वाले हैं | पढ़ाई में बहुत अच्छे हैं नितीश हर गतिविधी में हिस्सा जरूर लेते हैं | मन से  बहुत चंचल और दयालु हैं | 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें