रविवार, 11 मार्च 2018

कविता ये बदलता मौसम,

" ये बदलता मौसम "

ये बदलता मौसम,
कुछ कहते क्यों नहीं |
चिड़िया की बसेरा,
उजड़ रहे हैं क्यों यूहीं |
क्या जो कुछ हो रहा है,
क्या ये सभी है सही |
ये बदलता मौसम,
कुछ कहते क्यों नहीं |

मनुष्य बड़े ही नादान है,
ज्ञान से सभी अनजान है | 
इनको कोई बताता क्यों नहीं ,
ये बदलता मौसम, 
कुछ कहते क्यों नहीं |

इस धरती ने ही हमें सवारी है, 
पर हमने ही इसे दी बीमारी है | 
क्या हमने की हैयह सही, 
ये बदलता मौसम,
 कुछ कहते क्यों नहीं | | 

नाम : देवराज कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर 


कवि परीचय : यह है देवराज कुमार जो की बिहार के नवादा जिले से यहाँ रहकर पढ़ाई कर रहे हैं | पढ़ाई में हमेशा एफर्ट करते है | बड़े होकर एक फिलॉस्फर बनना चाहते है या फिर एक अच्छे डांसर | 

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