शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

कविता : मैं वो बहता हवा नहीं

" मैं वो बहता  हवा नहीं जो "

मैं वो बहता  हवा नहीं जो, 
मैं वो बहता  हवा नहीं जो, 
हिमालय से टकराकर मुड़ जाता हूँ |  
मैं वो ठण्डा मौसम नहीं, 
पल भर में बदल जाता हूँ |  
मैं तो वो बंदा हूँ जो, 
जिंदगी की राह में | 
लाखों सपने सजाता हूँ, 
क्या करू वो सपनों को | 
जिसको  मैंने सजाया है,
उन सपनों के वजह से ही | 
यहाँ तक मेहनत से आया हूँ,
निगाहें मेरी उन राहों पर | 
जो मेरी जिंदगी को सरल बनाया, 
आने वाले कल के दिन | 
खूब रौनक लायगा | |

नाम : देवराज कुमार , कक्षा : ७थ, अपनाघर  

1 टिप्पणी: