शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

कविता : दुनियाँ घूमूँ

" दुनियाँ घूमूँ "

 चाह है मेरी की दुनियां घूमूँ ,
हर जगह मस्ती में झूमूँ | 
देखूं मैं नई किरणों का शहर,
जंहा न हो दुश्मनों का कहर | 
पद यात्रा से  हवाई यात्रा करूँ ,
आसमान में जाकर नई साँस भरूँ | 
जहाँ -जहाँ जाऊँ मैं,
सारे संस्कृति को अपनाऊँ मैं | 
ठंडी, गर्मी और झेलूं बरसातें, 
घूमूँ दिनभर और सारी रातें | 
जहाँ भी जाऊँ ख़ुशी से झूमूँगा, 
जीवन एक दें है खुल के जीऊंगा |  

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 8th, अपनाघर
कवि परिचय : इनकी कविताओं में दिन पर दिन दिन सुधार हो रहा है .रोचक भरी कवितायें लिखने वाले यह हैं प्रांजुल कुमार | इस बन्दे में कविता और खेल कूट -कूटकर भरा है | प्रान्जुल को खेलने में वॉलीबॉल पसंद हैं | 

5 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर कविता । बहुत सुन्दर चिट्ठा। शुभकामनाएं।

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  2. आदरणीय सुशील जी आपको बहुत बहुत धन्यवाद की आपको बच्चों की रचनाएँ पसंद आई ..बाल सजग टीम

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 14 नवम्बर 2017 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. अरे वाह ! बड़ी अच्छी चाह है और कविता भी बहुत अच्छी लिखी है।

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