" दुनियाँ घूमूँ "
चाह है मेरी की दुनियां घूमूँ ,
हर जगह मस्ती में झूमूँ |
देखूं मैं नई किरणों का शहर,
जंहा न हो दुश्मनों का कहर |
पद यात्रा से हवाई यात्रा करूँ ,
आसमान में जाकर नई साँस भरूँ |
जहाँ -जहाँ जाऊँ मैं,
सारे संस्कृति को अपनाऊँ मैं |
ठंडी, गर्मी और झेलूं बरसातें,
घूमूँ दिनभर और सारी रातें |
जहाँ भी जाऊँ ख़ुशी से झूमूँगा,
जीवन एक दें है खुल के जीऊंगा |
कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 8th, अपनाघर
कवि परिचय : इनकी कविताओं में दिन पर दिन दिन सुधार हो रहा है .रोचक भरी कवितायें लिखने वाले यह हैं प्रांजुल कुमार | इस बन्दे में कविता और खेल कूट -कूटकर भरा है | प्रान्जुल को खेलने में वॉलीबॉल पसंद हैं |
सुन्दर कविता । बहुत सुन्दर चिट्ठा। शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुशील जी आपको बहुत बहुत धन्यवाद की आपको बच्चों की रचनाएँ पसंद आई ..बाल सजग टीम
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 14 नवम्बर 2017 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..।
जवाब देंहटाएंअरे वाह ! बड़ी अच्छी चाह है और कविता भी बहुत अच्छी लिखी है।
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