बुधवार, 11 अक्टूबर 2017

कविता : पृथ्वी निराली

 " पृथ्वी निराली  "

सुंदर सा संसार हमारा, 
जिस पर बसा है दुनिया सारा | 
ढूंढ आए और जग सारा,
कहीं नहीं मिला पृथ्वी जैसा सहारा | 
पृथ्वी बानी खुली आसमानों में, 
तारे टिमटिमाएँ रत में | 
दिन में खो जाता है तारा, 
फिर न दिखाई देता तारा | 
क्योंकि पृथ्वी है सुंदर निराला | | 

कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर

 कवि परिचय : यह हैं नितीश मांझी ये बिहार राज्य से यहाँ पढ़ने के लिए आये हैं | विज्ञान और अंतरिक्ष के बारे में पढ़ने की बहुत रूचि रखते है | कवितायेँ भी अधिकतर अंतरिक्ष पर लिखते हैं | बहुत ही शांत स्वभाव के रहने वाले नितीश के माता - पिता मजदूरी का कार्य करते हैं | क्रिकेट और फुटबॉल खेलना पसंद करते हैं | 

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