" साल "
बीत गया साल पता न चला यार,
आके गई ऐसे जैसे कोई बयार ।
हर चीज को सँभालने में,
खुद को इस कदर ढालने में ।
किस बात की जीत या हार,
बीत गया साल पता न चला यार ।
क्या हुआ समझ न आया,
समय पल भर में कैसे गुजर गया ।
सबसे मुख मोड़ गया,
बीता हुआ कल छोड़ गया ।
किसी को ख़ुशी, किसी को प्यार,
बीत गया साल पता न चला यार ।
कवि: देवराज, कक्षा 7th, अपना घर
कवि का परिचय: देवराज "अपना घर" परिवार के सदस्य है। ये बिहार के रहने वाले है। इनका परिवार ईट भठ्ठों में प्रवासी मजदूर का कार्य करते है. देवराज यंहा "आशा ट्रस्ट" के कानपुर केंद्र "अपना घर" में रहकर, शिक्षा ग्रहण कर रहे है। वर्तमान में ये कक्षा 6th के छात्र है। देवराज को कवितायेँ लिखना अच्छा लगता है। क्रिकेट के दीवाने है, ए वी डिविलयर्स इनके आदर्श है। देवराज को डांस करना बहुत पसंद है। हमें उम्मीद है कि आपको इनकी ये नवीन रचना पसंद आएगी।
कवि का परिचय: देवराज "अपना घर" परिवार के सदस्य है। ये बिहार के रहने वाले है। इनका परिवार ईट भठ्ठों में प्रवासी मजदूर का कार्य करते है. देवराज यंहा "आशा ट्रस्ट" के कानपुर केंद्र "अपना घर" में रहकर, शिक्षा ग्रहण कर रहे है। वर्तमान में ये कक्षा 6th के छात्र है। देवराज को कवितायेँ लिखना अच्छा लगता है। क्रिकेट के दीवाने है, ए वी डिविलयर्स इनके आदर्श है। देवराज को डांस करना बहुत पसंद है। हमें उम्मीद है कि आपको इनकी ये नवीन रचना पसंद आएगी।
साल दर साल ऐसे ही बीच जाता है ... अच्छी रचना ...
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