शीर्षक:- प्रकृति
प्रकृति को इस वक्त....
जो दिया जा रहा धोखा,
एक दिन जरुर आएगा....
प्रकृति का दिया हुआ झोका,
जिसमें होगा सब कुछ....
मर मिटने को तैयार,
इसीलिए तो मैं कहता हूँ....
इतने अत्याचारी न बनो यार,
प्रकृति को जब अपना....
खुमार आ जायेगा,
तो इन हत्यारों को....
बुखार आ जायेगा,
उस खुमार की आंधी में....
जब सब कुछ उठ जायेगा,
तब किसी कोने में बैठ....
वही हत्यारा चिल्लाएगा,
तब जो भी उस वक्त....
रोता हुआ पाया जायेगा,
तो शायद वह केवल गीत गायेगा....
मैं तो चाहता हूँ की तुम,
अभी से गीत गाते रहो....
प्रथ्वी यूँ ही सुख चैन से चलाते रहो,
उस समय जो भी....
गुमसुम सा जायेगा पाया,
उसके द्वारा यही....
गीत जायेगा गुनगुनाया,
इन खुबसूरत फूलों से....
सजी इस धरती को मत उजाड़ो,
इस न्यारी सी धरती को....
प्रकृति को इस वक्त....
जो दिया जा रहा धोखा,
एक दिन जरुर आएगा....
प्रकृति का दिया हुआ झोका,
जिसमें होगा सब कुछ....
मर मिटने को तैयार,
इसीलिए तो मैं कहता हूँ....
इतने अत्याचारी न बनो यार,
प्रकृति को जब अपना....
खुमार आ जायेगा,
तो इन हत्यारों को....
बुखार आ जायेगा,
उस खुमार की आंधी में....
जब सब कुछ उठ जायेगा,
तब किसी कोने में बैठ....
वही हत्यारा चिल्लाएगा,
तब जो भी उस वक्त....
रोता हुआ पाया जायेगा,
तो शायद वह केवल गीत गायेगा....
मैं तो चाहता हूँ की तुम,
अभी से गीत गाते रहो....
प्रथ्वी यूँ ही सुख चैन से चलाते रहो,
उस समय जो भी....
गुमसुम सा जायेगा पाया,
उसके द्वारा यही....
गीत जायेगा गुनगुनाया,
इन खुबसूरत फूलों से....
सजी इस धरती को मत उजाड़ो,
इस न्यारी सी धरती को....
कवि :- सोनू कुमार
कक्षा :- 11
अपनाघर
वाह जी बल्ले बल्ले
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे
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