बुधवार, 1 अगस्त 2012

कहानी :- लालची महापुरुष

कहानी :-  लालची महापुरुष 
आप सभी लोंगो ने बहुत सी कहानियां पढ़ी होंगी और सुनी भी होंगी हो सकता है। कि आप ने लिखा भी हो, आज मै आपको जिस कहानी से परिचित कराने जा रहा हूँ। वह वाकई में सुनने और सुनाने लायक है।
         भयानक घना जंगल था। और उस जंगल में से अजीब-अजीब सी चीखें और डरावनी आवाजें सुनाई दे रही थी। जंगल इतना घना था, कि धोखे से यदि एक पक्षी भी किसी झाड़ी में फंस जाये तो उसे निकलने में काफी वक्त लग जायेगा। आखिर उस जंगल में घुसने की चेष्टा कौन करेगा। आइये आगे बढ़ते है, कि आगे क्या हुआ ? यह जो जंगल था, उस जंगल तह पहुँचने के लिए सर्वप्रथम पहाड़ों पर चढ़ना और उन पहाड़ों को पार कर कटीली झाडियों से चौड़ी नदी पड़ती थी। जो भी उस नदी के किनारे पहुँच जाता था। तो उस नदी को पार करने के लिए बहुत देर तक इंतजार करना पड़ता था। क्योंकि उस नदी में केवल एक ही नाव चलती थी, वो भी मुफ्त में बिना पैसे लिए वह नाव ही किसी भी व्यक्ति को उस पार ले जाने और इस पार लाने के लिए उपलब्ध थी। लेकिन एक शर्त थी जो भी उस नाव में बैठता नाव चलाने वाला उससे प्रश्न करता था। यदि सही जवाब होता तो नाव नदी में डूब जाती थी। इस तरह से बहुत से व्यक्ति गए और जंगल में पहुँचने से पहले ही नदी में डूब कर मर गए। मैं आप लोगों को यह बताना भूल ही गया कि आखिरकार उस जंगल में लोग जाते ही क्यों थे ? वो इस लिए की उस जंगल में जो भी एक बार यदि धोखे से भी पहुँच जाये। तो उसका भला ही भला होता था। वैसे तो वहां पर पहुँचाना ही मुश्किल था। पर  कुछ भी हो एक पढ़े लिखे व्यक्ति ने दिमाग लगाया। एक न बोलने वाले( गूंगा ) को पढ़ा-लिखा कर उस जंगल में भेजा। जिससे नाविक उससे कोई भी प्रश्न पूछे तो वह जवाब ही न दे पाए क्योंकि वह तो  गूंगा था। इस तरह  से उस होशियार व्यक्ति ने उस गूंगे को लेकर नदी के तट तक किसी तरह से पहुँच गया। और उसने गूंगे को बैठा दिया। गूंगा बैठ गया लेकिन नाव आगे ही नहीं बढ़ रही थी। क्योंकि शर्त यह थी, कि नदी के पास जितने भी व्यक्ति होंगे वह सभी एक साथ ही एक बार में जायेंगे और एक बार जो बैठ गया तो उसका उतरना तभी संभव है। जब तक कि वह एक बार नदी पार कर जंगल में घूमकर वापस न आए अत: उन होशियार महापुरुष को भी बैठना पड़ा। जब नाव बीच में पहुँचने ही वाली थी। कि तभी उस नाविक नें एक प्रश्न पूछा ? एक ही प्रश्न अभी से पूछा जाता था। और उसमे शर्त यह थी कि जो पहले नाव में बैठेगा वही जवाब देगा अब वह जवाब कैसे देता ? क्योंकि वह तो गूंगा था। अत: इस प्रकार से वह दोनों नदी को पार कर उस घने जंगल में पहुँच ही गए। जंगल में प्रवेश करते ही उनको अचानक अचंभा हुआ। आज तक उन लोगों ने इतना घना जंगल कभी नहीं देखा था खैर छोडिये इन बातों में क्या रखा है। जंगल में पाई जाने वाली शक्ति( रहस्य ) के अनुसार वह दोनों बदल गए गूंगा बोलने लगा और दिमाग से भी तेज हो गया। होशियार महापुरुष तो इतने ज्ञाता हो गये कि कुछ कह ही नहीं सकते अंत में जब वह दोनों वापस नाव में बैठकर वापस हो रहे थे। तब नाविक ने पुन: वही प्रश्न किया। इस बार अचानक से गूंगे ने जवाब दे दिया क्योंकि जंगल की शक्तियों के अनुसार अब वह बोलने लगा था।  अत: गूंगे के जवाब देते ही नाव डगमगाने लगी। और नाव अब डूब रही थी अंत में नाव डूब ही गई। और वह दोनों बचते-बचते मारे गए वाकई में हमें इतना लालच नहीं न करना चाहिए कि हमें अपनी जान तक कि परवाह न हो। 
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें "लालच नहीं" करना चाहिए  

लेखक : आशीष कुमार , कक्षा : 10 , "अपना घर" 

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