सोमवार, 25 जून 2012

शीर्षक :- बचपन

शीर्षक :- बचपन 
बच्चे होते है, मन के सच्चे....
सबको लगते हैं, अच्छे,
लगते हैं, तब तक अच्छे....
रहते हैं, जब तक बच्चे,
जब हो जाते हैं, वो बड़े....
तब बचपन खो जाता है,
घर गृहस्ती में लोग लग जाते हैं....
उसी जीवन में व्यस्त हो जाते है,
फिर कभी उससे निकल नहीं पाते हैं....
इसी में जीवन ख़त्म हो जाता है,
ये बच्चे होते हैं मन के सच्चे....


कवि : हंसराज कुमार 
कक्षा : 9 
अपना घर 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें