शीर्षक :- गर्मी
सूरज तपता धरती तपती....
गर्म हवा जोरों से चलती,
तन से बहुत पसीना बहता....
हाथ सभी के पंखा होता,
काले बादल काले बादल....
गर्मी दूर भगा रे बादल,
रिमझिम बूंद बरसाना बादल....
झम- झम पानी बरसाना बादल,
गर्मी दूर भागता बादल....
सबको राहत देता बादल,
सूरज तपता धरती तपती....
गर्म हवा जोरों से चलती,
सूरज तपता धरती तपती....
गर्म हवा जोरों से चलती,
तन से बहुत पसीना बहता....
हाथ सभी के पंखा होता,
काले बादल काले बादल....
गर्मी दूर भगा रे बादल,
रिमझिम बूंद बरसाना बादल....
झम- झम पानी बरसाना बादल,
गर्मी दूर भागता बादल....
सबको राहत देता बादल,
सूरज तपता धरती तपती....
गर्म हवा जोरों से चलती,
कवि : जीतेन्द्र कुमार
कक्षा : 9
अपना घर
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंये रचना तो बहुत पुरानी है...
जवाब देंहटाएंनन्हें कवि ने अपने नाम से जरूर प्रकाशित करवायी है... लेकिन इसके कवि तो कोई ओर हैं..
कवि जीतेन्द्र से अपेक्षा है वों कवि का नाम ढूँढकर सभी को बताएँगे.