मंगलवार, 3 जनवरी 2012

कविता : अपनी भाषा को बढ़ाएं

 अपनी भाषा को बढ़ाएं 
अपनी भाषा दूर करे सबकी निराशा ,
सबके मन में एक ही आशा .....
मिल जुलकर सब रहें ,
धारा जैसे नदिया की बहें .....
कल-कल करे नदिया की धारा,
समुंदर का पानी है खारा ....
 समुंदर के पानी का रंग नीला-नीला ,
पानी के ऊपर बैठा था एक गुबरैला ....
हम सब मिलकर रहें या न रहें ,
नदियाँ की धारा जैसे क्यों बहें....
सब कोई अपना-अपना सोचते हैं ,
एक दूसरे को सब आपस में लूटते हैं  ......

लेखक : आशीष कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें