कविता - देश
जो देश बिगड़ चुका हैं उन्हें फिर सुधारिए,
ये कहना तो आप मेरा मन जाइये .....
डर लगता हैं इन नेताओं से ,
कही फिर से इसे बेच न दे ....
अगर बेचा तो फिर दुबारा संभलेगा नहीं,
बचाना हैं तो इन नेताओं को हटाना हैं ...
जो देश बिगड़ चुका हैं उन्हें सुधारिए ,
ये कहना तो आप मेरा मान जाइये ......
जो देश बिगड़ चुका हैं उन्हें फिर सुधारिए,
ये कहना तो आप मेरा मन जाइये .....
डर लगता हैं इन नेताओं से ,
कही फिर से इसे बेच न दे ....
अगर बेचा तो फिर दुबारा संभलेगा नहीं,
बचाना हैं तो इन नेताओं को हटाना हैं ...
जो देश बिगड़ चुका हैं उन्हें सुधारिए ,
ये कहना तो आप मेरा मान जाइये ......
लेखक - सागर कुमार
कक्षा - ८ अपना घर ,कानपुर
सच्ची बात! लेकिन बड़े माने तब न!!!
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