शुक्रवार, 24 जून 2011

कविता -दो इसे अंग

दो ऐसे अंग 
हमारे शरीर में दो ऐसे अंग ,
जिनकी बात निराली हैं ....
उनके हाथ में कुछ नहीं हैं ,
सब ऊपर वाले का खेल .....
जिसको थोड़ी सी आहट सी मिल जाये ,
वह सब को चौका देता .....
उससे नहीं कोई महान,
हो रही मस्तिष्क और कान की बात....
हमारे शरीर में दो ऐसे अंग ,
जिनकी बात निराली हैं ....
कुछ भी कोई कहता ,
कान मगर सुन तो लेता हैं....
वह तो मस्तिष्क के हाथ में हैं ,
क्या रखना हैं क्या भुलाना हैं .....
हमारे शरीर में दो ऐसे अंग ,
जिनकी बात निराली हैं .....

लेखक -अशोक कुमार , कक्षा -९ अपना घर ,कानपुर

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