बुधवार, 13 अप्रैल 2011

कविता - भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार 
भ्रष्टाचार कितना भरा  पड़ा हैं ,
उससे ज्यादा सड़ा पड़ा हैं ....
राजतंत्र के आगे ,
लोकतंत्र भी गिरा पड़ा हैं....
रुक जाती हैं विकास शीलता,
इन नेता लोगो के आगे ....
नेता जल्दी जल्दी सोचे ,
बांध बोरी बिस्तर जनता यहाँ से भागे ...
नेता सोच रहे बैठकर ,
राज्य बढ़े एक दो तीन....
तभी तो बजा पायेगे ये नेता,
इस गरीब जनता की बीन   .....
देश एक मंत्री अनेक ,
चले सभी लकुटिया टेक...
मांग रहे जनता से भीख,
बाद में मारे जनता को पीक.....
नेता लोगो की वजह से ,
छायी गांवों में  बदहाली .....
इसीलिए कहा जाता हैं ,
ये देश रहा न भ्रष्टाचार से खाली ....
लेखक - सोनू कुमार 
कक्षा - ९  अपना घर ,कानपुर

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति | धन्यवाद|

    जवाब देंहटाएं
  2. आप की इस कविता को पढ कर मुझे यह महसूस हुआ की वास्‍तव मे नेताओ के नाम से हि हमारा देश अंधकार की ओर जा रही है
    धन्‍यावाद

    जवाब देंहटाएं
  3. bhot khubsurat poem he ye sach he kaha he kavi ne

    जवाब देंहटाएं