कविता - भट्ठों के हलात
जब भट्ठों में ईंटा बनता हैं ,
तब बच्चा- बच्चा साँचा भरता हैं .....
नन्हे- नन्हे हाथो से बच्चे ,
ये हैं बिलकुल दिल से भोले सच्चे .....
कर्जा जब बढता हैं ,
मजदूर तब नहीं लड़ता हैं.....
बच्चों से काम करवाता हैं ,
मालिक बच्चों के हाथ जलाता हैं.....
गर्म -गर्म रहते हैं ईंट ,
बच्चों की हालत नहीं रहती हैं फिट.....
जब भट्टों में ईंटा बनता हैं ,
तब बच्चा बच्चा साँचा भरता हैं ......
लेखक - सोनू
कक्षा - ९
अपना घर ,कानपुर
सुंदर भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंआपकी इस खूबसूरत पोस्ट की चर्चा तो बाल चर्चा मंच पर भी की गई है!
http://mayankkhatima.blogspot.com/2011/02/34.html