मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

कविता रेल चली

रेल चली
रेल चली रेल चली ,
डग मग डग मग करती रेल चली.....
यहाँ वहा पहुचाती रेल चली,
रेल हमें सीटी बजा कर बुलाती ....
कुछ यात्री चढ़ नहीं पाते,
जो चढ़ नहीं पाते वापस घर लौट आते......
दूसरे दिन रेल को पकड़ पाते,
जहा पहुचना वहा पहुच पाते.....
रेल चली रेल चली,
सीटी दे कर रेल चली......
लेखक चन्दन कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

4 टिप्‍पणियां:

  1. रेल चली रेल चली,
    सीटी दे कर रेल चली......

    ha ha ha

    bahut khub

    shekhar kumawat

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  2. वाह बेटा चन्दन!! बहुत बढ़िया लिख लेते हो आप तो. और लिखो! शाबास!

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  3. छुक-छुक रेल..बड़ी प्यारी लगी ये बाल कविता..बधाई.


    -----------------------------------
    'पाखी की दुनिया' में जरुर देखें-'पाखी की हैवलॉक द्वीप यात्रा' और हाँ आपके कमेंट के बिना तो मेरी यात्रा अधूरी ही कही जाएगी !!

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