शनिवार, 31 अक्टूबर 2009

कविता: बिन डंडो की शिक्षा कब तक लायेंगें

बिन डंडो की शिक्षा कब तक लायेंगें

हमको तो सब कुछ याद है,
अब तो मार खायेंगे...
जो कुछ याद नही है,
उसे तो बिल्कुल रट लेंगे...
अब होने को है पेपर उसमे लिख देंगे,
जो भी देंगे उसको हल कर देंगे...
ये सब याद हुआ है डंडे के बल पे,
टीचर तो बैठे रहते कुर्सी पे...
हाथ में हरदम ले कर डंडे,
मार से रोज टूटे कितने डंडे...
भोले भाले और मुस्काते सारे बच्चे आते है,
रात को रटते सुबह भूल ही जाते है...
डंडे खाते फिर याद करते,
रोते रोते घर को जाते....
डंडे के बल पर हम कब तक पढ़ पाएंगे,
क्या कोई अब प्यारे टीचर आयेंगे....
बिन मारे क्या हम नही पढ़ पाएंगे,
बिन डंडो की शिक्षा कब तक लायेंगे....

लेखक: अशोक कुमार, कक्षा , अपना घर

3 टिप्‍पणियां:

  1. बिन डंडे की शिक्षा का
    दिन तब आयेगा !
    जब सही मायनों में,
    यहाँ हर एक विद्यार्थी
    आजादी और गुलामी में,
    फर्क कर पायेगा !!

    अभी हमने आजादी के
    सही मायने नहीं छुए !
    हमें अंग्रेजो से,
    शारीरिक आजादी तो मिल गई
    मगर दिमागी तौर पर,
    अभी आजाद नहीं हुए !!

    जब विद्यार्थी खुद,
    शिक्षा का महत्व समझ पायेगा !
    तभी आजादी का,
    असली मजा भी है और
    बिन डंडे की,
    शिक्षा का दिन तब आयेगा !

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  2. "लालनाद बहवो दोषा-ताड़नाद बहवो गुणा:"
    एक दो डंडे भी खाना जरुरी है ज्ञान मे ध्यान लगता है, हमने भी ड़ंडे खाये है स्कुल मे मास्टर जी से तब यहां तक पहुंचे नही तो आज किसी जेल की शोभा बढ़ा रहे होते। हां उस समय यह खराब लगता था, लेकिन अब सोचते है तो लगता है ठीक ही था,

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