शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2009

कविता: आख़िर क्या......?

आख़िर क्या....

कुछ नही बोलता,
फालतू में चिल्लाता...
दूसरो को जगाता,
सबकी नींद भगाता...
फटी जेब सिलता,
सभी से यह मिलता...
हलवा पूड़ी खाता,
रात को अपने घर में सोता...
आख़िर क्या....?


लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा ७, अपना घर

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