बुधवार, 8 जुलाई 2009

कविता: यादें गाँव और बचपन की

यादें गाँव और बचपन की
याद हमें आती है हर पल अपने गाँव की बातों की
याद हमें आती है हर पल, बचपन की उन बातों की.
गाँव की गलियां, गाँव के रस्ते, खुशबु अपने माटी की.
याद हमें आती है हर पल अपने गाँव की बातों की.
गुल्ली डंडा, चोर सिपाही, कुकडू कू और भाग-भगाई.
चिक्का, कबड्डी, लाली बेटा, खेल थे अपने गांवों की.
याद हमें आती है हर पल, अपने गाँव की बातो की.
आम के पेडों पर वो चढ़ना, खेल-खेल में लड़ना-झगड़ना.
रात हुई तो जंगल परियां, थे किस्से, कहानी बाबा की.
याद हमें आती है हर पल, अपने गाँव की बातो की.
फूलों पर तितली को पकड़ना, रात को मिलके जुगुनू पकड़ना.
बारिस होते ही तैराते, कागज की उन नावों की.
याद हमें आती है हर पल, अपने गाँव की बातों की.
भालू का हम नाच देखते, जादू की वो बात सोचते.
ध्यान लगा रहता था दिल में, आइसक्रीम की घंटी की.
याद हमें आती है हर पल, अपने गाँव की बातों की.
भैस के ऊपर चढ़ना-उतरना, बकरी और पिल्ले को पकड़ना.
खेतों की उस पगडण्डी पर, झरबेरी के पेडों की.
याद हमें आती है हर पल, अपने गाँव की बातों की.
लकड़ी की पाटी ले जाना, खट्टी मिठ्ठी इमली खाना.
यारो के संग एक दूजे को, चिढ़ने और चिढ़ाने की.
याद हमें आती है हर पल, अपने गाँव की बातों की.
गाँव के कुत्तो को दौड़ाना, पेडों से बन्दर को भगाना.
चरता गधा मिल जाये तो, मजा थी उसकी सवारी की.
याद हमें आती है हर पल, अपने गाँव की बातों की.
सबके संग में मेला जाना, चोरी-चुपके चाट खाना.
यारो के संग एक दूजे को, हंसने और हँसाने की.
याद हमें आती है हर पल, अपने गाँव की बातों की.
याद हमें आती है हर पल, बचपन की उन बातों की.
गाँव की गलियां, गाँव के रस्ते, खुशबु अपने माटी की.
याद हमें आती है हर पल, अपने गाँव की बातों की.

महेश, कानपूर

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब महेश जी ,
    बचपन की यादों को अपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में गीतबद्ध किया है ..अच्छी रचना .
    हेमंत कुमार

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  2. बड़ी शुद्दत से याद किया है. बढ़िया.

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  3. बड़ी खूबसूरती से बचपन की यादों को कविता में उतारा है आपने ... बधाई ...

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  4. बचपन की यादों को बडी खूबसूरती से चित्रित किया है ।

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