बचपन
बचपन लौट के नही आता।
जब भी ढूँढा यादों में पाता॥
बचपन के अजब रंग थे ।
दोस्त और मस्ती के संग थे॥
न जाति न धर्म न कोई भी रंग था।
न मज़हब न सीमा न कोई भी जंग था॥
आम के पेड़ अमरूद्ध की डाली ।
बेरों के कांटे मकड़ी की जाली॥
पापा की डांट मम्मी का प्यार।
छोटा सा बछड़ा था अपना यार॥
पतंगो की डोर खीचें अपनी ओर।
दादा के किस्सों का मिलता न छोर॥
नानी का गाँव कभी धूप कभी छावं।
बारिश का पानी डूबे कीचड़ में पावं॥
मछली पकड़ना फिर मिल के झगड़ना।
आम के मोलों को कसके रगड़ना॥
जाड़ो में आग खेतों में साग।
बारिश के पानी में कागज की नावं।।
गुल्ली व डंडो की प्यारी से खेल।
चोर सिपाही में होती थी जेल॥
दुल्हे बराती से होता था मेल ।
बन जाती थी अपनी प्यारी सी रेल॥
जब भी ढूँढा यादों में पाता॥
बचपन के अजब रंग थे ।
दोस्त और मस्ती के संग थे॥
न जाति न धर्म न कोई भी रंग था।
न मज़हब न सीमा न कोई भी जंग था॥
आम के पेड़ अमरूद्ध की डाली ।
बेरों के कांटे मकड़ी की जाली॥
पापा की डांट मम्मी का प्यार।
छोटा सा बछड़ा था अपना यार॥
पतंगो की डोर खीचें अपनी ओर।
दादा के किस्सों का मिलता न छोर॥
नानी का गाँव कभी धूप कभी छावं।
बारिश का पानी डूबे कीचड़ में पावं॥
मछली पकड़ना फिर मिल के झगड़ना।
आम के मोलों को कसके रगड़ना॥
जाड़ो में आग खेतों में साग।
बारिश के पानी में कागज की नावं।।
गुल्ली व डंडो की प्यारी से खेल।
चोर सिपाही में होती थी जेल॥
दुल्हे बराती से होता था मेल ।
बन जाती थी अपनी प्यारी सी रेल॥
स्वागत है ब्लॉग जगत पर
जवाब देंहटाएंबचपन
किसी का भी हो
सलोना होता है
पर यह वक्त
के हाथ से छूटा
खिलोना होता है
श्यामसखा‘श्याम
कविता या गज़ल में हेतु मेरे ब्लॉग पर आएं
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http:/katha-kavita.blogspot.com दो छंद मुक्त कविता हर सप्ताह कभी-कभी लघु-कथा या कथा का छौंक भी मिलेगा
सस्नेह
श्यामसखा‘श्याम’
बहुत सुंदर लगा ... आपकी कविता पढते हुए बचपन आंखों में घूमता रहा ... पर सही है ... लौटकर नहीं आ सकता।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 03 जून 2017 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंबचपन का उन्मुक्त जीवन निश्चलता से भरा होता है।
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