सोमवार, 23 मार्च 2009

कविता:- रोटी


रोटी
गोल - गोल होती
मगर गेंद नही कहलाती
सभी लोग है इसको जानते
मगर पहचान नही पाते
इन्सान की यह भूख मिटाती
इसी लिए तो रोटी कहलाती
हम को लगती कितनी प्यारी
दुनिया में है सबसे न्यारी
नई जिन्दगी देती है
रोटी प्यारी होती है
अशोक कुमार
अपना घर, कक्षा 6

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें