गुरुवार, 29 नवंबर 2018

कविता : तुम भी लिखो

" तुम भी लिखो "

अब चीजें मुझे समझ में आई,
जब दो कदम आगे चलकर देखा |
मैनें पीछे मुड़कर देखा की,
पापा आप मुझे बुला रहे थे,
हर गलतियों का कसर निकल रहे थे |
तब मुझे गुस्सा आता था,
कभी घर से भाग जाने का
मन भी करता था |
दूसरे बच्चों की किस्मत देख
खुद को कोसता था,
तो कभी सब को
बुरा भला कहता था |
किस्मत ने भी क्या साथ निभाया,
मुझको अपना यार बनाया |

परिवार से परेशां होकर,
मैनें मरने की ठाना पर |  
समय ने गठनी शुरू की नई कहानी,
बहुत कठिनाइयों के बाद खड़ा हूँ आज |
जरा आप भी सोचो अपनी जिंदगी को,
लिखो डायरियों के पन्नों के बीच
शायद वो आपको आने वाले समय में
दे आपको नई संगती

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता कक्षा आठ के विद्यार्थी देवराज के द्वारा लिखी गई है | देवराज मूल रूप से बिहार के निवासी हैं पर वर्तमान काल में देवराज अपना घर संस्था में रहकर अपनी पढ़ाई कर रहे हैं | देवराज को डांस करना बहुत पसंद है और कुछ नया सिखने की बहुत ललक है | देवराज विज्ञानं दुनिया को बहुत पसंद करते हैं |