शनिवार, 13 मार्च 2010

कविता :हम सब बीमार पड़ते

हम सब बीमार पड़ते

जब- जब नाख़ून हुए बड़े,
गंदगी उसमें भरना शुरू हुयी ।
देखने में अच्छे न लगते,
सफाई ठीक से कर न पाते।
गन्दगी उसमें भरी रहती,
खाने के साथ में।
मुँह के अन्दर जाती,
अनेक बिमारी के लक्षण होते।
झट से हम बिमार पड़ते,
डाँक्टर के पास जब जाते।
डाँक्टर झट से दवा है देता,
नाख़ून काटने को साथ में कहता।
नाखुनो को हमेशा रखो साफ़,
बीमारी के समूह में।
कभी न हो तुम साथ,
जब जब नाख़ून हुए बडे,
तब तब बीमारी हुई हमारे साथ।

लेखक : अशोक कुमार
कक्षा :
अपना घर

1 टिप्पणी:

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रेरक रचना ....