सोमवार, 2 मार्च 2009

कविता:- पैसा

पैसा
जीते पैसा मरते पैसा
जंहा भी देखो पैसा ही पैसा
आगे पैसा पीछे पैसा
ऊपर पैसा नीचे पैसा
चारो ओर पैसा ही पैसा
आज के बाजार मे
पैसा लूट रहे है
एक जैकेट खरीदने में ७५० रुपये लगते है
एक स्वेटर खरीदने में २५० रूपये लगते है
इस लिए हम कहते है
आगे पैसा पीछे पैसा
जंहा भी देखो पैसा ही पैसा
ऐसी मंहगाई में गरीब लोग कंहा से खरीदेंगे
खरीद नही पाएंगे तो ठंढ में ही मर जायेंगे
उनकी तरफ़ तो सरकार भी नही देखती है
तो भाइयो इसी लिए हम कहते है
आगे पैसा पीछे पैसा
जंहा भी देखो पैसा ही पैसा
तरु कुमार
कक्षा ५, अपना घर




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